ब्यूरो
रुड़की। भाजपा या कांग्रेस दोनों दलों में मेयर पद हेतु टिकट के दावेदार पार्टी आलाकमान को अपने-अपने जीत के समीकरण समझाने में लगे हैं। जात-बिरादरी की संख्या से लेकर समाजसेवा के कार्यों को इन दावेदारों द्वारा गिनाया जा रहा है। इन सबमें पार्टियां किस योग्यता के हिसाब से टिकट देंगी,यह तो वक्त बताएगा। किन्तु कुछ दावेदार ऐसे हैं जिनकी एक अतरिक्त योग्यता न सिर्फ दूसरे दावेदारों पर भारी पड़ रही है बल्कि इनकी यह योग्यता जीत की राह को भी आसान बनाने वाली साबित हो सकती है,यही अतरिक्त योग्यता 2013 के चुनाव में यशपाल राणा की जीत के समीकरणों में एक कारण बन चुकी है।
यहां जिस योग्यता की बात हो रही है,वह है रहन-सहन और मिजाज के साथ ही भाषा से देहाती तासीर की। बात आगे बढाने से पूर्व इस देहाती तासीर और इसका फायदा क्यों है?इस बारे में जान लेना जरूरी है। सबसे पहली बात तो जो व्यक्ति शहर में रहकर शहर के लोगों के बीच भी लोकप्रिय हो और देहात के लोगों से उसे इस तासीर के आधार पर अतिरिक्त समर्थन मिले तो इसे डबल फायदे वाली ही बात कहा जायेगा। दरअसल देहाती तासीर का अर्थ है कि सम्बंधित व्यक्ति का आज भी गांव देहात से जुड़ाव है।उसकी बोली भाषा के साथ ही रहन सहन में कहीं न कहीं गांव देहात का टच है। उसके घर किसी भी व्यक्ति का आना जाना बिना किसी औपचारिकता के ऐसे हो जाता है जैसे गांव में किसी व्यक्ति के घर। साथ ही देहात के लोगों से उसके सम्पर्क लगातार ऐसे कायम हों,जैसे वह उनके बीच का ही व्यक्ति हो। अब बात करें इस देहाती तासीर की तो यह जान लेना जरूरी है कि भले रुड़की की राजनीति की चर्चा में जातिगत लिहाज से कुछ बिरादरियों के ही नाम लिए जाते हों,किन्तु यह सच है कि आज रुड़की में गांव देहात से आकर रहने वाले लोगों की संख्या बहुत हो चुकी है। पार्टियां अपने लिहाज से हार जीत के समीकरण भले देखती हों लेकिन सच यह है कि देहात के यह लोग अब रुड़की के किसी भी चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने की स्थिति में आ गए हैं। निगम के नए परिसीमन को देखते हुए तो इस देहाती समाज को ही चुनाव की दशा और दिशा तय करने वाल कहा जा सकता है। पिछले निगम चुनाव में यशपाल राणा की जीत में इस समाज ने अहम भूमिका निभाई थी। विशेष बात यह है कि यह समाज जाति को नही देखता,बल्कि उसे सिर्फ इस बात से सरोकार होता है कि सम्बंधित प्रत्याशी बस उसके जैसा होना चाहिए। मसलन ठाकुर बिरादरी के यशपाल राणा के चुनाव के दौरान देहाती समाज के बीच एक नारा चला था कि बस यो है म्हारे जैसा ही। इस बार के चुनाव को देखते हुए बात करें तो यूं विभिन्न दलों में ऐसे दावेदार हैं जिनका किसी रूप में गांव देहात से सम्बन्ध होगा। किन्तु,यो है म्हारे जैसा,वाली आवाज देहाती समाज से कांग्रेस के जिस दावेदार के लिए निकल रही है वह हैं ओमप्रकाश सेठी। ध्यान रहे कि ओमप्रकाश सेठी भले शहरी रामनगर क्षेत्र में रहते हों और सहज व सरल व्यवहार के कारण नगर के लोग तो उन्हें पसंद करते ही हों,इसके साथ ही गांव देहात का शहर में रहने वाला अधिकांश तबका उन्हें अपने बीच का ही व्यक्ति मानता है। इसके कारण भी हैं। वह गांव देहात से जुड़े हुए हैं। उनकी भाषा बोली,यदि वह सामान्यतः बात करें तो एकदम से देहात वाली नजर आती है। उनकी शहरी क्षेत्र में रहने वाली देहात की जनता में अच्छी पकड़ है। पार्टी स्तर पर राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो ओमप्रकाश सेठी टिकट की दौड़ में तेजी से उभरे हैं। उनके सामने भाजपा की तरह पंजाबी वाली भी कोई बाधा नही है। बल्कि जबसे यशपाल राणा पर शासन से प्रतिबंध लगा है तबसे कहीं न कहीं यह भी सामने आया है कि कांग्रेस यहां पंजाबी को ही लड़ाने पर विचार कर सकती है,सामने भाजपा से बनिया प्रत्याशी होने पर तो इसकी संभावना और ज्यादा रहेगी। ऐसे में कांग्रेस टिकट के अन्य पंजाबी दावेदारों के मुकाबले जहां ओमप्रकाश सेठी का देहाती तासीर वाला पलड़ा भारी है,वहीं पार्टी स्तर पर उनके ऊपर किसी तरह की गुटबाजी का ठप्पा भी नही है। नगर से लेकर जिला और प्रदेश स्तर के सभी नेताओं से उनकी निकटता है और पार्टी में किसी भी स्तर पर वह विवादित नही हैं। इसके साथ ही चुनाव भले उन्होंने अभी न लड़ा हो पर चुनाव लड़ाने का तजुर्बा उन्हें खूब है।