नितिन कुमार/रुडकी
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जहरीली शराब केस
यूपी और उत्तराखंड में जहरीली शराब से हुई 100 से ज्यादा मौतों पर बड़ा खुलासा हुआ है। गांवों में रेक्टीफायर के नाम से मशहूर केमिकल कच्ची शराब को अधिक नशीला बनाता है। कहते हैं कि इसकी मात्रा ज्यादा हो जाए तो यही नशा जहर बन जाता है। बताया जाता है कि यूपी के एजेंट बाल्लुपुर समेत आसपास के गांवों इसकी सप्लाई करते हैं।
हर दिन एजेंट शराब माफिया को यह केमिकल बेचने के लिए यूपी की सरहदें पार कर उत्तराखंड के सीमावर्ती गांवों में पहुंचते हैं। ग्रामीणों की मानें तो इसकी अधिक मात्रा ने ही शराब में जहर घोल दिया और इतने लोगों की जान चली गई।
पुलिस ने जहरीली शराब के आरोपियों को पकड़कर मामले का खुलासा तो कर दिया गया है, लेकिन अभी यह जानना बाकी है कि शराब को जहर बनाने का काम किसने और किस तरह किया। बताया जाता है कि कच्ची शराब बनाने वाले मौत के सौदागार अंदाजे से ही केमिकल की मात्रा को कम और ज्यादा करते हैं। यही अंदाजा कभी भी लोगों की जान पर भारी पड़ सकता है।
एक बोतल केमिकल से कच्ची शराब की 20 बोतलें होती हैं तैयार
बीते बुधवार और बृहस्पतिवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ। सूत्रों की मानें तो रेक्टीफायर एक ऐसा केमिकल है, जिसमें 100 प्रतिशत एल्कोहल होता है।
बताया जाता है कि एक बोतल केमिकल से कच्ची शराब की 20 बोतलें तैयार की जाती है। रेक्टीफायर के रूप में मौत का यह सामान 100 रुपये प्रति बोतल से भी कम में बेचा जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि शराब माफिया जो कच्ची शराब बनाते हैं, उसे और नशीली बनाने के लिए इसका प्रयोग करते हैं।
सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि कुछ एजेंट सहारनपुर और मुजफ्फरनगर क्षेत्र में स्थापित शराब की फैक्ट्रियों से रेक्टीफायर को बहुत कम दाम में खरीदते हैं। इसके बाद इन्हें उत्तराखंड के गांवों में सप्लाई किया जाता है
अनाज के बदले शराब खरीदते थे नशे के आदी
ग्रामीण बताते हैं कि बाल्लुपुर, भलस्वागाज और बिंडुखड़क गांव में करीब एक हजार लोग रोजाना शराब की लत रखते हैं। जब उनके पास पैसे नहीं होते तो घर में रखे अनाज को लेकर दुकानों पर जाते हैं और इसके बदले कच्ची शराब खरीदकर पीते हैं। बताया जाता है कि इन गांवों में करीब 20 दुकानों पर यह शराब बेची और खरीदी जाती है।
श्मशान में जगह नहीं तो खेत समतल कर किया अंतिम संस्कार
पिछले तीन दिनों में बिंडुखड़क गांव में चिताओं के जलने का सिलसिला जारी है। यहां 11 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। ग्रामीणों के अनुसार, बिंडुखड़क गांव के श्मशान में लाशों केे अंतिम संस्कार की जगह नहीं बची है। लिहाजा पास के खेत समतल कर वहां चिंता जलाई जा रही है।