देहरादून। लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। देवभूमि उत्तराखंड भी चुनावी रंग में रग चुकी है। हर तरफ चर्चायें हो रही हैं कि किसको कहां से टिकट मिल रहा है। भाजपा हो या कांग्रेस मुख्यालय आपको नेता आपस में एक दूसरे से यही सवाल पूछते हुए नजर आयेंगे कि किसको कहां से मिल रहा है। किसका टिकट कट रहा है और किसको फिर से मौका मिल रहा है। इस तरह की अटकलें आपको आजकल मीडिया से लेकर उत्तराखंड के हर विधानसभा क्षेत्र में आम लोगों के बीच भी देखने को मिल सकती है। राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोग सोशल मीडिया के जरिए पल-पल की अपडेट लेते हुए नजर आ रहे हैं। सब का एक ही सवाल है किसको कहां से टिकट? इस सवाल का जवाब जानने के लिये अभी हमें थोड़ा इंतजार करना पडेगा।
हर बार की तरह इस बार भी भाजपा और कांग्रेस में ही कांटे का मुकाबला दिखाई दे रहा है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा मोदी मैजिक के सहारे पांचों सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही। एक तरह से भाजपा ने साल 2009 में कांग्रेस के हाथों हुई करारी हार का बदला ले लिया। महत्वपूर्ण बात यह रही कि भाजपा ने इस चुनाव में अपने तीन दिग्गजों, जो पूर्व में मुख्यमंत्री भी रहे, को मैदान में उतारा। खंडूड़ी, कोश्यारी, निशंक की यह त्रिमूर्ति खासे बड़े अंतर से अपनी-अपनी सीटें जीतने में सफल रही। टिहरी सीट पर राज परिवार का कब्जा बरकरार रहा और यहां से महारानी माला राज्यलक्ष्मी शाह सांसद बनी। एकमात्र सुरक्षित सीट, अल्मोड़ा से अजय टम्टा जीतकर बाद में मोदी सरकार में राज्य मंत्री बने। भाजपा को इस बार भी मोदी मैजिक का भरोसा है। कांग्रेस इस मैजिक को फेल करने के लिये हर रणनीति पर काम कर रही है।
कांग्रेस किस सीट से किसको प्रत्याशी उतारेगी। इस बात का फैसला कांग्रेस संसदीय बोर्ड करेगा। सूत्रों की माने तो जल्द ही कांग्रेस संसदीय बोर्ड की बैठक होने वाली है। उसमें सारी स्थिति साफ हो जायेगी। वहीं कांग्रेस मुख्यालय में इस तरह की चर्चायें भी गर्म थी कि राहुल गांधी रैली में कांग्रेस प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर सकते हैं। अब देखना होगा कि कब तक प्रत्याशियों को लेकर तस्वीर साफ होती है। कांग्रेस आलाकमान उत्तराखंड के सियासी समीकरणों को समझते हुए क्या फैसला लेता है।
उत्तराखंड कांग्रेस के पांच बाहुबली
कांग्रेस की रणनीति का अहम हिस्सा है हर सीट से मजबूत दावेदार को मैदान में उतारना। यूं तो कांग्रेस की हर सीट पर आधा दर्जन से अधिक नेताओं ने दावेदारी जताई हुई है। लेकिन जिन नेताओं की स्थिति सबसे ज्यादा मजबूत है और जिनका विरोध भी न के बराबर होने की संभावना है कांग्रेस आलाकमान ऐसे नेताओं पर दाव खेल सकता है।
इनमें सबसे पहला नाम आता है कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री व असम प्रभारी हरीश रावत का। हरीश रावत की जनता में लोकप्रिय छवि का फायदा कांग्रेस इस चुनाव में उठा सकती है। हरीश रावत की हरिद्वार लोकसभा सीट पर मजबूत पकड़ है। जिसका फायदा कांग्रेस इस चुनाव में जरूर उठाना चाहेगी।
हरिद्वार के बाद नम्बर आता है टिहरी लोकसभा सीट का। टिहरी लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की मजबूत दावेदारी है। लेकिन यहंा चकराता से विधायक प्रीतम सिंह की स्थिति समीकरण के हिसाब से यहां पर मजबूत पर नजर आती है। चकराता, विकासनगर, सहसपुर सीट पर मजबूत पकड़ यहां पर टिकट की दौड़ में प्रीतम की स्थिति को मजबूत बनाती है।
पौड़ी सीट की बात करें तो यहां कांग्रेस के लिये समीकरण काफी जटिल हैं। कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता वर्तमान में इस सीट पर दिखाई नहीं देता जो इस लोकसभा सीट के अंतर्गत पढ़ने वाली सारी विधानसभा सीटों पर अपना प्रभुत्व रखता हो। यही वजह दिखाई देती है कि कांग्रेस आलाकमान रणनीति के तहत भाजपा सांसद भुवनचंद्र खंडूडी के बेटे मनीष खंडूडी को कांग्रेस ज्वाइन करा रहा है। कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद यहां टिकट को लेकर मनीष खंडूडी की स्थिति अन्य दावेदारों के मुकाबले ज्यादा मजबूत दिखाई देती है।
कुमांउ मंडल की अल्मोड़ा और नैनीताल सीट से दमदार प्रत्याशियों केा मैदान में उतारने की चुनौती कांग्रेस के सामने हैं। बात करें अल्मोड़ा सीट को तो इस रिर्जव सीट पर यहां से पूर्व सांसद व बर्तमान में राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा मजबूत पकड़ रखते हैं। इस सीट के पूरे भूगोल को टम्टा अच्छे से जानते हैं। हरीश रावत के करीबी और अल्मोड़ा लोकसभा सीट के हर गणित को समझने वाले टम्टा ने 2009 के लोकसभा चुनाव में भी खुद को साबित किया है।
बता करें नैनीताल सीट की तो यहा से दो बड़े नाम पूर्व सांसद केसी बाबा, और महेन्द्र पाल टिकट के लिये मजबूत दाबेदार हैं। लेकिन हाल ही में सांसद केसी सिंह बाबा ने नैैनीताल लोकसभा सीट से डॉ. महेंद्र पाल का नाम आगे किया था। केसी बाबा ने अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए लोकसभा चुनाव लड़ने से अनिष्छा जताई थी। उन्होंने कहा था कि दो बार सांसद रह चुके डॉ. पाल लोकसभा चुनाव के लिए स्वाभाविक दावेदार हैं। पाल को बाबा का साथ मिलने से उनकी स्थिति मजबूत दिखाई दे रही है।
अब देखना होगा मोदी मैजिक को फेल करने के लिये कांग्रेस अलाकमान किन बाहुबलियों को मैदान में उतारता है। सबकी नजरें इस ओर लगी हुई हैं कि कांग्रेस आलाकमान उत्तराखंड के सियासी समीकरणों को समझते हुए क्या फैसला लेता है।